Note sull'episodio
"शोभित जी राधे राधे महाराज जी सादर प्रणाम महाराज जी अध्यात्म की तरफ चलते चलते अचानक मन विचलित सा हो जाता है उल्टे से ख्याल आते हैं नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न से होती है महाराज हा व चक संसार का मनोरंजन उसको प्रिय लगता है मन को मन मानी आचरण करना उसको प्रिय लगता है उसकी गलती नहीं है हम जहां उसको लगाते हैं वहीं व राजी होने लगता है जैसे अध्यात्म मार्ग में लगा रहे हैं तो इसमें जहां जहां व लगा रहा है उसके विरुद्ध बात है उसको भोग चाहिए उसको हर इंद्र मना खटा इंद्रियानी प्रकृति स्थान कर सती पांच ज्ञानेंद्रियो ं के द्वारा विषयों में विचर का स्वभाव बना लिया है भगवान कह रहे हैं आप भगवान के अंश मम वांस जीव लोके जीव भूता सनातना मना कष्टा इंद्रिया प्रकृति स्थान कर सती आप इस मन के भुलावे में आकर मन भोगों के लावे में आपको फसाकर यह सदैव अधीन रखा है अब अध्यात्म सुनना शुरू किया अध्यात्म चल तो अध्यात्म में मन को वश में किया जाता है और अभी तक आप मन के वश में रहे तो जब आप ...